शीतला माता क्या,क्यों और कैसे



अंधविश्वास उन्मूलन की ओर एक छोटा सा कदम...


किवंदति है कि 19वीं सदी की महामारी चेचक की चपेट में आई जोधपुर राजघराने की एक महिला की मौत पर बीमारी फैलने के भय से उस दिन कोई उसके दाह संस्कार को राजी नहीं हुआ, तो शव को गधों पर लाद कर जोधपुर की "कागा की पहाड़ियों" (जहां जोधपुर शहर के परंपरागत श्मशान है) में फिंकवाया गया, जिसकी याद में शीतला अष्टमी के दिन कागा की पहाड़ियों में शीतला माता का मेला भरता है।
शीतला माता का मेला
आज राजघराने की वही मृतका चेचक हरने वाली देवी (शीतला माता) के रूप में इतनी पूजी जाने लगी कि राजस्थान के आधे से अधिक जिलों में इस दिन को एक प्रमुख उत्सव का दिन मानते हुए, जिलाधीश द्वारा अवकाश घोषित किया जाता है। 

आजादी के बाद भारत सरकार ने चेचक के उन्मूलन के लिए टीके (जिसका आविष्कार रूसी वैज्ञानिक जैनर ने किया था) लगाने का सघन अभियान चलाया।
एडवर्ड जेनर
मैं उन दिनों बहुत छोटा था। मैं देखता था कि चेचक वैक्सीनेशन (हाथ खिंणने) से बच्चों को तेज बुखार हो जाता था। टीकाकरण से  चेचक जैसी महामारी से बचाव के उपरांत तात्कालिक तेज बुखार की आशंका के डर से वैक्सीनेशन वर्कर (खिंणारा) पर पत्थरबाजी तक हो जाती थी। गाली गलौच व छीनाझपटी तो आम थी। वैक्सीनेशन वर्कर (खिंणारा) के डर से अधिकतर माताएं अपने बच्चों को छिपा देती थी।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चेचक बीमारी से बच गये बच्चों के दुबारा चेचक नहीं होती थी सो ऐसे बच्चे को पका हुआ (नींगलियूड़ो) माना जाता था। उन दिनों बिना पके (नींगलियूड़े) बच्चे का तो लोग रिश्ता तक नहीं करते थे, जबकि चेचकग्रस्त बच्चा काफी बदसूरत भी होता था। 

मेरी मां भी संयोग से बचपन में चेचक की बीमारी से जिंदा बच गई थी तथा उसकी आंखे भी सलामत थी। 

खैर, शायद कुछ इन्हीं कारणों से मैं तथा मेरी मां दोनों बड़े बुजूर्गों के साथ खिंणारा के पक्ष में सद्भाव रखते हुए संघर्ष भी करते थे। 

उन दिनों के गीत आज भी वह परिस्थितियां याद दिला देते हैं कि "कांकड़ आय खिंणारो र उतरियो" या "क टाबर मती खिंणजे र खिंणारा लाल, पिणहारियां की छाती धड़के। "

यहां मैं उन दिनों का जिक्र कर रहा हूं, जब मैं साक्षर हुआ ही था। उन दिनों, विद्यालय के बाहर अपने अक्षर ज्ञान को जांचने-परखने का कोई अवसर नहीं हुआ करता था। जब कभी भी कोई वैक्सीनेशन वालंटियर या मलेरिया वर्कर घर-घर आकर डंठल की कलम को लाल मिट्टी के गोल में भिगोकर, किसी घर की दीवार पर कुछ लिखता था, तो दीवारों पर लिखे उन शब्दों को पढ़ने का रस लेने के लिए मैं दूर तक उसके पीछे लग जाता था।
वैक्सीनेशन वर्कर
अर्थात मैं मेरे बचपन के उन दिनों का जिक्र कर रहा हूं, जब मैं साक्षर हुआ ही था। उन दिनों दीवारों पर एक ही नारा लिखा होता था कि "चेचक (बडी़ माता) बताओ, सौ रुपये नकद पाओ।" बाद में यह राशि बढ कर पांच सौ, हजार तक हो गई। तब तक, मैं चेचक व जैनर के बारे में कुछ जानने भी लगा था। अत: मैं उन दिनों बहुत सोचता था कि, न तो दीवारों पर के नारों में जैनर का कहीं नाम है और न ही वैक्सीनेशन वर्कर (खिंणारा) के प्रति आमजन में कहीं कोई श्रद्धा है, कि वह लड़-झगड़ कर भी, जैसे तैसे टीकाकरण करता है। 

कितना दुखद है कि, उन दिनों शहर से आये खिंणारा को कोई गृहणी राबडी़ रोटी के लिए भी नहीं कहती थी।  फिर भी जैनर के टीके और उन लोगों के संघर्ष की बदौलत ही इस रूढ़ीवादी देश में चेचक का उन्मूलन हो सका। 

आज उसी शीतला (बडी़ माता) के मन्दिरों में भीड़ देखकर सिर शर्म से झुक जाता है कि....

देश में अंधविश्वास उन्मूलन कब और कैसे होगा...?

गौरवपूर्ण सनातन संस्कृति के नाम पर, रूढ़ीवादी परंपराओं में जकड़े देश में वैज्ञानिक चिंतन के विकास की आशा में,

शिवनारायण इनाणियां, भाकरोद,
नागौर (राज.)
शीतला माता क्या,क्यों और कैसे शीतला माता क्या,क्यों और कैसे Reviewed by Rajiv Singh on 8:36 AM Rating: 5

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